ल्यूकोडर्मा एक त्वचा रोग है जिसे विटिलिगो भी कहा जाता है जिसमें त्वचा पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। यह तब होता है जब त्वचा में रंग बनाने करने वाली कोशिकाएं (मेलानोसाइट्स) ख़त्म होने लगती हैं, जिससे त्वचा में रंगद्रव्य (मेलेनिन) की कमी हो जाती है। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी होती है जिसमें इम्यून सिस्टम गलती से अपनी ही कोशिकाओं पर हमला करने लगता है।
ल्यूकोडर्मा रोग का कोई तय ईलाज नहीं है इसलिए इस बात का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है कि ल्यूकोडर्मा रोग होने पर क्या नहीं खाना चाहिए लेकिन इससे पहले कुछ ख़ास जानकारियाँ लेनी चाहिए जैसे;
ईन कारणों से ल्यूकोडर्मा रोग हो सकता है;
ऑटोइम्यूनिटी: शरीर का इम्युनिटी सिस्टम मेलानोसाइट्स को ख़त्म कर देता है, जिससे मेलेनिन का बनना कम हो जाता है।
जन्मजात/आनुवंशिक: कुछ लोगों को ल्यूकोडर्मा विरासत में मिल सकता है, यानी यह परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता है।
पर्यावरण: कुछ केमिकल्स के संपर्क में आने या सनबर्न होने से भी ल्यूकोडर्मा हो सकता है।
अन्य बीमारियां: कुछ अन्य बीमारियां, जैसे कि थायराइड रोग भी ल्यूकोडर्मा के ख़तरे को बढ़ा सकती हैं।
तनाव: शारीरिक या भावनात्मक तनाव भी इसकी स्थिति को खराब कर सकता है।
ईन लक्षणों से ल्यूकोडर्मा रोग की पहचान हो सकती है;
त्वचा पर सफ़ेद धब्बे: ल्यूकोडर्मा का सबसे ख़ास लक्षण त्वचा पर सफ़ेद या हल्के रंग के धब्बे होना है।
बालों का सफेद होना: कभी-कभी प्रभावित क्षेत्रों में बाल भी सफेद हो जाते हैं।
आँखों का रंग बदलना: ल्यूकोडर्मा के कारण आँखों का रंग भी बदल सकता है।
धब्बे का फैलना: ल्यूकोडर्मा के धब्बे समय के साथ बड़े हो सकते हैं या अन्य धब्बों के साथ मिल सकते हैं।
खुजली: धूप या पसीने के संपर्क में आने पर धब्बों में खुजली हो सकती है।
धूप से संवेदनशीलता: धब्बों में धूप से ज्यादा असर पड़ सकता है, जिससे वे लाल या खुजलीदार हो सकते हैं।
चोट के बाद धब्बे का बढ़ना: चोट लगने के बाद प्रभावित क्षेत्र पर धब्बे फैल सकते हैं या नए धब्बे बन सकते हैं।
ईन लक्षणों के दिखने का मतलब है कि व्यक्ति को ल्यूकोडर्मा रोग हो सकता है जिसके बाद व्यक्ति को खाने-पीने पर ख़ास ध्यान देना ज़रूरी होता है।
ल्यूकोडर्मा रोग होने पर आमतौर पर ईन चीज़ों का परहेज़ करना चाहिए
इस बारे में अलग-अलग राय है। दही और निम्बू खट्टी चीज़ों में आते हैं इसलिए कुछ लोग इन्हें ल्यूकोडर्मा के लिए खराब मानते हैं जबकि कुछ लोग इन्हें सही मानते हैं क्योंकि इनमें मौजूद विटामिन-सी ल्यूकोडर्मा रोगी को फायदा कर सकता है।
नहीं, चाय और कॉफी सीधे तौर पर ल्यूकोडर्मा (विटिलिगो) को नहीं बढ़ाती हैं।
नहीं, लेकिन कुछ लोगों को इनसें बचने की सलाह दी जाती है या इनका सेवन सीमित रखना चाहिए क्योंकि यह शरीर में गर्मी पैदा कर सकता है और कुछ लोगों में सफेद दाग की समस्या को बढ़ा सकता है।
खाना चाहिए. ल्यूकोडर्मा में सोया प्रोडक्ट्स को आमतौर पर ठीक माना जाता है।
ल्यूकोडर्मा और ग्लूटेन (गेहूं) के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन, कुछ लोगों में ग्लूटेन के सेवन से सीलिएक रोग हो सकता है या कुछ लोग ग्लूटेन इनटोलरेंट हो सकते हैं। इसलिए ऐसी स्तिथि में ग्लूटेन-फ्री खाना ही ठीक रहता है।
आज के इस ब्लॉग में हमने आपको बताया कि ल्यूकोडर्मा रोग होने पर क्या नहीं खाना चाहिए. लेकिन आप सिर्फ इन सुझावों पर निर्भर ना रहें. अगर आपको ल्यूकोडर्मा रोग है या ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर से संपर्क करें या कर्मा आयुर्वेद अस्पताल में भारत के बेस्ट आयुर्वेदिक डॉक्टर से अपना इलाज करवा सकते हैं। हेल्थ से जुड़े ब्लॉग्स और आर्टिकल्स के लिए जुड़े रहें कर्मा आयुर्वेद के साथ।
Second Floor, 77, Block C, Tarun Enclave, Pitampura, New Delhi, Delhi, 110034