लिवर की कोशिकाओं में ज्य़ादा चर्बी यानी वसा जमा हो जाने को फैटी लिवर रोग कहते हैं.
इन्सुलिन प्रतिरोध ; यह एक बीमारी है जिसमें ग्लूकोज़ का लेवल बिगड़ जाता है जो टाइप -2 शुगर का कारण बन सकता है.
जन्मजात कारण यानी कि बचपन से ही लिवर में चर्बी का जमा होना.
कुछ दवाइयाँ जैसे कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स
वायरल हेपेटाइटिस: हेपेटाइटिस सी या किसी वायरस से लम्बे समय तक इन्फेक्टेड रहना.
आमतौर पर फैटी लिवर रोग के लक्षण दिखाई नहीं देते लेकिन कुछ लोगों में ये लक्षण दिख सकते हैं -
आयुर्वेद के हिसाब से दूध या डेयरी प्रोडक्ट्स को फैटी लिवर के लिए ठीक नहीं माना जाता है लेकिन कुछ स्टडी के हिसाब से अगर कोई व्यक्ति जो शराब नहीं पीता या बहुत कम पीता है, यानी कि ‘नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज’ है तो ऐसे में डेयरी प्रोडक्ट्स लिया जा सकता है.
फ्रुक्टोज़ यानी ज्य़ादा चीनी वाले और पाचन में दिक्कत देने वाले फलों को फैटी लिवर में नहीं खाना चाहिए जैसे;
A: नहीं, क्योंकि अचार में नमक ज्य़ादा होता है जो कि फैटी लिवर के मरीजों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. इसी प्रकार ज्य़ादा मसालेदार खाना लिवर पर दबाव डाल सकता है जो फैटी लिवर के लिए अच्छा नहीं होता.
A: नहीं, लेकिन ज्य़ादा मात्रा में फ्रुक्टोज यानी चीनी वाले ड्राई फ्रूट्स जैसे किशमिश, खजूर आदि खाना फैटी लिवर के लिए हानिकारक हो सकता है.
A: ज्य़ादा कार्बोहाइड्रेट वाली दालें जैसे चना, राजमा और काली दाल फैटी लिवर में नुकसान पंहुचा सकती है इसलिए इन्हें सिमित मात्र में खाना चाहिए.
A: हाँ, क्योंकि इससे लिवर पर वसा का और अधिक जमाव हो सकता है.
A: हाँ, लेकिन इस बारे में एक बार डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें.
A: हाँ, क्योंकि इनमें चीनी की मात्रा ज्य़ादा होती है.
आज के इस ब्लॉग में हमनें आपको बताया कि फैटी लिवर रोग होने पर क्या नहीं खाना चाहिए लेकिन आप सिर्फ इन सुझावों पर निर्भर ना रहें. अगर आपको फैटी लिवर रोग है या ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर से संपर्क ज़रूर करें या कर्मा आयुर्वेद अस्पताल में भारत के बेस्ट आयुर्वेदिक डॉक्टर से अपना इलाज करवा सकते हैं. हेल्थ से जुड़े ऐसे और भी ब्लॉग्स और आर्टिकल्स के लिए जुड़े रहें कर्मा आयुर्वेद के साथ।
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