पार्किंसन रोग एक न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग है. ‘न्यूरो’ यानी तंत्रिका और ‘डीजेनेरेटिव’ यानी गिरावट. इस रोग में दिमाग की तंत्रिका कोशिकाएं (न्यूरॉन) धीरे-धीरे खराब होने लगती हैं जिससे दिमाग शरीर की गति को ठीक से कंट्रोल नहीं कर पाता. यह रोग ख़ास कर दिमाग के एक हिस्से सब्सटेंशिया निग्रा में डोपामाइन बनाने वाले न्यूरॉन्स पर असर करता है.
पार्किंसन एक बहुत ही गंभीर बीमारी है, इसलिए ये जानना बहुत ज़रूरी है कि पार्किंसन रोग होने पर क्या नहीं खाना चाहिए? लेकिन इससे पहले इस बीमारी के बारे में कुछ दूसरी बातें जान लेनी चाहिए, जैसे;
पार्किंसन रोग ईन कारणों से होता है -
डोपामाइन की कमी: डोपामाइन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो तंत्रिका कोशिकाओं को एक-दूसरे को संदेश भेजने में मदद करता है. इसे ‘हैप्पी हार्मोन’ भी कहा जाता है क्योंकि यह व्यक्ति को अच्छा और खुश महसूस करवाता है
जन्मजात/अनुवांशिक: कुछ लोगों को यह रोग अपने माता-पिता से भी मिल सकता है. जब माता-पिता से विरासत में मिले जींस में कोई कमी हो तो बच्चे को पार्किंसन रोग होने का ख़तरा ज़्यादा रहता है
पर्यावरण: किसी ज़हरीले पदार्थ के कांटेक्ट में आने से या कुछ ख़ास दवाइयों के सेवन से भी पार्किंसन रोग हो सकता है
पार्किंसन रोग की पहचान के लिए ये कुछ ख़ास लक्षण होते हैं -
कंपन: आराम करते समय हाथों या उंगलियों में कम्पन होता है. इसे "पिल-रोलिंग" कंपन कहा जाता है
मांसपेशीय अकड़न: मांसपेशियां कड़क हो जाती हैं जिससे हिलने-डुलने में दिक्कत होती है
गति में धीमापन: रोजाना के साधारण काम करने में भी देरी होती है
खराब बॉडी पोज़ और संतुलन: आदमी आगे की ओर झुकने लगता है और बैलेंस बनाने में दिक्कत होती है
आटोमेटिक होने वाले कामों में कमी: पलक झपकाना, मुस्कुराना, या चलते समय हाथों को हिलाना जैसे आटोमेटिक होने वाले काम भी ठीक से नहीं हो पाते
आवाज़ में बदलाव: आवाज़ धीमी, तेज, या अस्पष्ट हो सकती है
लेखन में बदलाब: हैण्ड-राइटिंग छोटी हो जाती है
अन्य लक्षण: अवसाद, चिंता, नींद की समस्याएं और कब्ज भी पार्किंसन रोग के लक्षणों में आ सकते हैं लेकिन ये लक्षण किसी दूसरी बिमारी के भी हो सकते हैं
पार्किंसन रोग के कई उपचार उपलब्ध हैं लेकिन इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, इसलिए ये जानना बहुत ज़रूरी है कि पार्किंसन रोग होने पर क्या नहीं खाना चाहिए?
पार्किंसन रोग होने पर ईन चीज़ों को खाने से परहेज़ करें -
प्रोसेस्ड मांस: जैसे कि सॉसेज, बेकन, और हॉट डॉग
तली हुई चीज़ें: जैसे कि फ्रेंच फ्राइज़ और चिप्स
ज़्यादा चीनी वाली मीठी चीज़ें: जैसे कि सोडा, जूस, और कैंडी
ज़्यादा नमक वाली चीज़ें: जैसे कि चिप्स और डिब्बाबंद चीज़ें
ज़्यादा कोलेस्ट्रॉल वाली चीज़ें: जैसे कि लाल मांस और अंडे
शराब: ज़्यादा मात्रा में शराब पीना पार्किंसन रोग के लक्षणों को बढ़ा सकता है
कैफीन: कुछ लोगों में कैफीन लेने से पार्किंसन रोग के लक्षण बढ़ सकते हैं
हाँ, प्रोटीन पार्किंसन की दवा के असर को प्रभावित कर सकता है, खासकर लेवोडोपा जैसी दवा।
ऐसा करना ठीक भी हो सकता है और खराब भी. एक स्टडी में पाया गया है कि पुरुषों में दूध का सेवन पार्किंसंस रोग के ख़तरे को 1.8 गुना और महिलाओं में 1.3 गुना बढ़ा सकता है। जबकि कुछ दूसरी स्टडीज़ के हिसाब से डेयरी प्रोडक्ट्स और पार्किंसंस के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया है, या संबंध कमजोर है।
इस बारे में कोई तय राय नहीं है. कैफीन एक उत्तेजक है जो पार्किंसन रोग के कुछ लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है, जैसे कि कंपन और कठोरता लेकिन कैफीन का सेवन कुछ लोगों में चिंता, बेचैनी या अनिद्रा को बढ़ा सकता है जो पार्किंसन रोगी के लिए ठीक नहीं|
आज के इस ब्लॉग में हमने आपको बताया कि पार्किंसन रोग होने पर क्या नहीं खाना चाहिए? लेकिन आप सिर्फ इन सुझावों पर निर्भर ना रहें. अगर आपको पार्किंसन रोग है या ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर से संपर्क करें या कर्मा आयुर्वेद अस्पताल में भारत के बेस्ट आयुर्वेदिक डॉक्टर से अपना इलाज करवा सकते हैं. हेल्थ से जुड़े ब्लॉग्स और आर्टिकल्स के लिए जुड़े रहें कर्मा आयुर्वेद के साथ|
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