किडनी शरीर का जरूरी हिस्सा होती है। किडनी में किसी भी तरह की खराबी आने से क्रिएटिनिन भी बढ़ने लगता है। इसकी वजह से लोग डायलिसिस करवाने की प्रक्रिया को अपनाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्रिएटिनिन कितना होने पर डायलिसिस होता है। अगर नहीं, तो चलिए आज इसके साथ ही हम जानेंगे कि आखिर डायलिसिस क्या होता है, क्यों करवाया जाता है?
किडनी शरीर से अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ निकालने का काम करती है, जो ब्लड को फिल्टर करते हैं। इसके बाद यूरिन के जरिए अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकलते हैं।
किडनी में किसी भी तरह की बीमारी के दौरान डायलिसिस करवाया जाता है। ऐसा तब होता है जब किडनी सामान्य काम का केवल 10 से 15% ही करती है। डायलिसिस न करवाने से नमक और दूसरे अपशिष्ट पदार्थ ब्लड में जमा होने लगते हैं और दूसरे अंगों को नुकसान पहुंचता है।
आपको बता दें कि जब क्रिएटिनिन लेवल 2 से बढ़ना शुरू हो जाता है और EGFR रेट कम होकर 30 तक हो जाता है तो डायलिसिस करवाना जरूरी हो जाता है।
डायलिसिस के बाद केला, संतरा, ब्राउन राइस, डेयरी प्रोडक्ट्स, जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक्स, सब्जियां, फल वगैराह नहीं लेने चाहिए।
डायलिसिस एक दर्द न होने वाली प्रक्रिया मानी जाती है। इसमें दर्द नहीं होता है, लेकिन डायलिसिस के मरीजों को डायलिसिस हो जाने के बाद लो ब्लड प्रेशर, मुंह सूखना, खुजली होना, इंफेक्शन होना, मांसपेशियों में दर्द, घबराहट जैसी समस्याएं होने लगती हैं।
तो जैसा कि आपने जाना कि क्रिएटिनिन कितना होने पर डायलिसिस होता है। ऐसे में अगर आपका क्रिएटिनिन भी बढ़ गया है और आप डायलिसिस करवाने की सोच रहे हैं, तो एक बार इस बारे में अपने डॉक्टर से सलाह जरूर कर लें।
अगर आपको भी डायलिसिस या क्रिएटिनिन बढ़ने से जुड़ी किसी तरह की समस्या आ रही है, तो आप अपना इलाज कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल में करवा सकते हैं, जहां साल 1937 से किडनी का आयुर्वेदिक इलाज किया जा रहा है और जिसे अब डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे हैं। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। किडनी डायलिसिस का आयुर्वेदिक इलाज या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना पूर्णतः प्राचीन भारतीय आयुर्वेद के सहारे से किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक इलाज कर रहा है।
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